पोस्ट नंबर : 5
कल की सोच,
आज की सोच,
आने वाले
कल की सोच।
जनने की सोच,
पालने की सोच,
पाने की सोच,
त्यागने की सोच।
मारने की सोच,
मरने की सोच,
मिटने की सोच,
मिटाने की सोच।
लूटने की सोच,
लुटाने की सोच,
पढ़ने की सोच,
पढ़ाने की सोच।
छपने की सोच,
छपाने की सोच
सोच ही सोच ,
अरे भाई सोच,
जम कर सोच।
मगर सबसे पहले
अपनी सोच के
बारे में सोच।
From the desk of : MAVARK
सिर्फ सोंच ही सोंच....अच्छी सोंच...अच्छी रचना..;
ReplyDeleteसोच के बारे में सोचा
ReplyDeleteऔर हम सोचते ही रह गये
बात हो रही थी टिसनू के बारे में
और आप कविता में ही बहका गये।
Soch...(imagination)...is the root cause of any developent....and truly said..."Apni soch k baare me soch" as it is the one which will decide...hw is the development...positive or negative...
ReplyDelete"Punurukti prakash" alankaar ka atyant sunder prayog..!!
aapki kavita padne ke baad maine bhi socha aur yeh mahsus kiya ki yadi socha na gaya hota to aaj kutch bhi na hota........
ReplyDeletesoch ke ghode aise daodao ki kutch accha he parinaam ho ..........
aur isi soch ne mughse kaha ki main apni soch se aapko avgat kara doon