Saturday, February 21, 2009

एक उपन्‍यास

पोस्‍ट नंबर 9
एक उपन्‍यास
ऊंची कोठी, ढेरों दौलत,
बड़ी-बड़ी कारों की शान,
एक नहीं तेरह दरबान,
सबके सब सधे हुये,
मैडम से डरे हुये।

कौन कहां से, क्‍यों, क‍ब आया,
किसने कैसा रंग जमाया ?
कभी किसी ने जान न पाया,
कोई किसी से पूछ न पाया।

चला कई वर्षों तक धंधा,
लोगों का अनुभव था मंदा।
तभी समय ने करवट बदली,
लोग फिर गये, साये गुम गये।

दरबानों ने बिस्‍तर बांधे,
कोठी के कुत्‍तों ने भी,
अपनी अपनी आदत बदली,
गली मोहल्‍ले में फिर-फिर कर,
लगे चाटने जूठी पतली।

और एक अरसे के बाद,
उसी गली के सारे कुत्‍ते,
भौंक उठे हो कर खूंखार।
बच्‍चे भाग चले निज घर में,
चीखें मार मार होकर भय त्रस्‍त।

लगी बरसने दरवाजों पर,
तभी पत्‍थरों की बौछार।
मैडम अपनी आज गली में,
नंगी-बौराई घूम रही थी। 
From the desk of : MAVARK

Tuesday, February 17, 2009

एकाकीमन

POST NO. 8
एकाकीमन

 

  • हम सभी हमेशा इस प्रयास में रहते हैं जो हमें नहीं पसंद है उससे मुक्‍त हो जायेंजिसे हम सुख का कारक नहीं मानते हैं उससे मुक्‍त हो जायें, जिसका साथ मुझे सुखमय नहीं लगता उससे मुक्‍त हो जायें। मुक्‍त होना एक प्रक्रिया है लेकिन ऐसी प्रक्रिया जो होने के साथ पुन: दूसरी प्रतिक्रिया को जन्‍म दे देती है, तो निश्‍चय ही हर मुक्ति के पीछे तमाम प्रतिक्रियाओं का जन्‍म होगा और हम मुक्‍त किए जाल से छूट कर प्रतिक्रियाओं के नये जाल में जकड़ जायेंगे।

  • आज का युवक विद्रोह की राह पर है। पग पग पर विद्रोह उसका सबब बन गया है। घर में विद्रोह, समाज से विद्रोह, व्‍यवस्‍था से विद्रोह और यहां तक कि अपने से विद्रोह करने में भी वो गुरेज नहीं करता। विद्रोह का जाल बढ़ता जा रहा है और आज का युवक उसमें उलझता जा रहा है। विद्रोह से न तो कोई समाधान मिलता है और न मुक्ति।

  • मुक्ति का उद्भव  तभी होता है जब आप सोचते हैं, जब आप देखते हैं और कुछ करते हैं। विद्रोह के द्वारा कदापि नहीं। त्‍वरित उदाहरण के रूप में जैसे हम किसी खतरे को देखते हैं सोच विचार, बहस विवाद और  संशय के बिना तुरंत रक्षा की क्रिया शुरू हो जाती है। इसका अर्थ ये हुआ कि देखना और क्रिया तो मूल है, सोचना तो जब संभव होगा, जब समय होगामुक्‍त होना , एकाकीपन, विद्रोह ये मन की आंतरिक दशाएं हैं जो किसी बाहरी उत्‍तेजना और  किसी ज्ञान पर निर्भर नहीं हैं और न ही किसी अनुभव और निष्‍कर्ष का प्रतिपाद हैं। हममें से अधिकांश लोग आंतरिक रूप से कभी भी एकाकी नहीं होते। उन्‍हें एकाकी  होने में डर लगता है। उन्‍हें हमेशा किसी का साथ चाहिए। वैसे भी एकाकी होने के लिए अथाह आत्‍मविश्‍वास कीआवश्‍यकता होती है।

  • एकाकी होने में बाधक हैं हमारी स्‍मृतियां, हमारे संस्‍कार, बीते हुए कल की तमाम घटनाएं। हमारा मन तो इन सभी बातों से कभी रिक्‍त ही नहीं हो पाता। तो एकाकी कैसे होगा? वस्‍तुत: एकाकी होना एक निष्‍कलुष मन:स्थिति है। निष्‍कलुष मन:स्थिति, मन को दुखों से मुक्‍त कर देती है। विद्रोह शांत हो जाता है। भय तिरोहित हो जाता है। हमें एक संपूर्णता का अनुभव होता है। ऐसी संपूर्णता जिसमें न तो अहं है और नही कोई दीनता।


From the desk of : MAVARK

   Posted by : MAVARK

 

 

Saturday, February 7, 2009

क्षितिज


               पोस्‍ट नंबर:  7 






क्षितिज
मैं जानता हूं ! 
आज भी जब तुम हार जाते हो,
थक जाते हो, खीज जाते हो, अपने से,
तब मेरी ओर आते हो,
सारी दुनिया को छोड़ कर,
किसी समंदर के तट से,
मेरी ओर निहारते हो,  
एक अबोध बालक की तरह,
और तब मैं तुम्‍हें प्रदान करता हूं,
अपार मानसिक ऊर्जा,
अद्भुत उत्‍साह।
जिसे ले कर,
तुम लौट जाते हो,
एक नई उमंग के साथ।
लेकिन जैसी कि तुम्‍हारी आदत है,
तुम फिर व्‍यस्‍त हो जाते हो,
निर्माण की प्रक्रिया  में।
बिना अपने पूर्वजों की हिदायतों को समझे,
इंकार कर देते हो मानने से लक्ष्‍मण रेखाओं को।
बिगाड़ने लगते हो,प्रकृति के रूप रंग और सौंदर्य को,
अपना तमाम अमूल्‍य समय बर्बाद करते हो,
आदमी को शैतान और शैतान को कबूतर बनाने में।
गाय को बकरी, ऊंट को खच्‍चर,
बिल्‍ली को चूहे का दोस्‍त और,
चूहे को बिल्‍ली का थानेदार बनाने में।
युगों का इतिहास है मेरी आंखों में,
अनेक प्रलय देखे हैं मैंने,
देखी है तुम्‍हारी तस्‍वीरें,
तुम्‍हारा भूत और भविष्‍य,
दोनों मुझसे छुपा नहीं है।
तुम केवल अपने आज,
को देख पा रहे हो,
मैं सत्‍य हूं और छल भी हूं,
मुझमें अद्भुत आकर्षण है।
तुम किसी एटम बम के सहारे,
मुझको नहीं पा सकते।
तुम्‍हारा कोई नापाम मुझे जला नहीं सकता,
कोई प्रक्षेपास्‍त्र मुझे छू तक नहीं सकता।
तुम कितने असहाय हो,
ना मुझे पा सकते हो,
ना छू सकते हो,
तुम्‍हारी बड़ी से बड़ी कारीगरी को,
मैं हमेशा मुंह चिढ़ाता रहता हूं,
फिर भी तुम्‍हारी आकांक्षा का केन्‍द्र,
तुम्‍हारे आकर्षण का केन्‍द्र,
मैं क्षि‍तिज,
तुम्‍हें कभी दुत्‍कारता नहीं हूं।

आओ मेरी ओर एक बार फिर आओ,
एक ईमानदार कोशिश करो,
मुझे देखने की,
अपनी बंद आंखों से।

जब तुम मुझे अपनी बंद आंखों से,
देखने लगोगे, तब मैं तुम्‍हें दूंगा,
अपार सुख, अद्भुत शांति,
और असीमित परन्‍तु नियंत्रित ऊर्जा।
तब तुम,
जैसी कि तुम्‍हारी आदत है,
एक बार फिर तुम लौटोगे,
नये निर्माण के लिये,
लेकिन तब तुम सृजन कर सकोगे
एक नये युग का।

मैं क्षितिज, युगों पहले था,
आज भी हूं और कल भी रहूंगा,
मैं शाश्‍वत हूं तुम मुझे, नकार नहीं पाओगे कभी,
जैसे कि हर सत्‍य को,
आज तक कोई नकार नहीं सका।

शाश्‍वत बनने के लिए तुम्‍हें,
आना ही होगा मेरी शरण में,
अनन्‍त की शरण में। 
From the desk of: MAVARK 

Monday, February 2, 2009

आपसे दो शब्‍द


पोस्‍ट नंबर: 6 
   

  जो कुछ संसार से सीखता हूं, महसूसता हूं, अनुभव करता हूं वही लिखता हूं। स्‍वांत: सुखाय लिखताहूं अपने सीखे हुए पाठों को याद रखने के लिए लिखता हूं। भोगे हुए  क्षणों को जो नहीं भूले जाते भुलाने के लिए लिखता हूं और जिन जिन क्षणों को बार बार याद करना चाहता हूं उन्‍हें हमेशा हमेशा हृदय में बसाने के लिए लिखता हूं।  जैसा कि मेरे एक गीत में है : कौन आ गया आज हृदय में। अगर लेखकी की जिंदगी के 42 वर्ष बिना छपास (बिना  छपने की ललक) के  गुजर सकते हैं तो शेष अगले ज्‍यादा से ज्‍यादा 20 वर्ष क्‍यों नहीं गुजर सकते?
लेकिन दोस्‍तों सबकी जिंदगी में एक वक्‍त ऐसा आता है जब वो अपनी कमाई को  दूसरों में बांटना चाहता है और इसके लिए वो पात्र ढूंढता है, लेकिन यह पात्र कैसा  होगा ये ज्‍यादातर निर्भर करता है कि उसने कमाई कैसे करी है। गाढ़ी मेहनत की कमाई  होगी तो पूरी सावधानी से, मनोयोग से सुपात्र ढूंढेगा, सुपुत्रों को देगा,  सुपोत्रों को देगा, सहोदरों को देगा, स्‍वजनों को देगा वो भी न मिले तो सच्‍चरित्रों को देगा, सज्‍जनों को देगा वो भी न ढूंढ पाया तो आंख मूंदकर जरूरतमंदों को दे  देगा। और अगर फोकट की या मुफ्त की कमाई होगी, सस्‍ती कमाई होगी तो मुफ्त में ही उड़ाएगा,  न कमाने में उसने कोई कष्‍ट उठाया है न सुपात्र ढूंढने का कष्‍ट उठाएगा। वेश्‍याओं  में उड़ा देगा, शराब पिएगा और पिलाएगा और तमाम दुष्‍कर्म इसी स्‍तर के करेगा और  अपनी उस कमाई को नष्‍ट कर देगा। अगर कोई इस कमाई से भी कमाने वाला निकला तो डंका पीट पीट कर दान देगा, यश कमाएगा, यश के नीचे मौका लगा तो कुछ और कमा लेगा।
इसी कड़ी में मैं अपने जीवन के अमूल्‍य क्षणों के अनुभवों को, नितांत कोमल  भावों को (कविता  के रूप में) आप  सभी स्‍वजनों और सुपात्रों के साथ साझा कर रहा हूं।
आपकी सभी नर्म व गर्म भावनाओं का मैं हृदय से आदर करूंगा। उन्‍हें प्रकाशित  करने का मतलब ही  होगा मेरा विनम्र आभार व स्‍नेहाभिवादन।
आप का
मवार्क