पोस्ट नंबर: 6
जो कुछ संसार से सीखता हूं, महसूसता हूं, अनुभव करता हूं वही लिखता हूं। स्वांत: सुखाय लिखताहूं अपने सीखे हुए पाठों को याद रखने के लिए लिखता हूं। भोगे हुए क्षणों को जो नहीं भूले जाते भुलाने के लिए लिखता हूं और जिन जिन क्षणों को बार बार याद करना चाहता हूं उन्हें हमेशा हमेशा हृदय में बसाने के लिए लिखता हूं। जैसा कि मेरे एक गीत में है : कौन आ गया आज हृदय में। अगर लेखकी की जिंदगी के 42 वर्ष बिना छपास (बिना छपने की ललक) के गुजर सकते हैं तो शेष अगले ज्यादा से ज्यादा 20 वर्ष क्यों नहीं गुजर सकते?
लेकिन दोस्तों सबकी जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब वो अपनी कमाई को दूसरों में बांटना चाहता है और इसके लिए वो पात्र ढूंढता है, लेकिन यह पात्र कैसा होगा ये ज्यादातर निर्भर करता है कि उसने कमाई कैसे करी है। गाढ़ी मेहनत की कमाई होगी तो पूरी सावधानी से, मनोयोग से सुपात्र ढूंढेगा, सुपुत्रों को देगा, सुपोत्रों को देगा, सहोदरों को देगा, स्वजनों को देगा वो भी न मिले तो सच्चरित्रों को देगा, सज्जनों को देगा वो भी न ढूंढ पाया तो आंख मूंदकर जरूरतमंदों को दे देगा। और अगर फोकट की या मुफ्त की कमाई होगी, सस्ती कमाई होगी तो मुफ्त में ही उड़ाएगा, न कमाने में उसने कोई कष्ट उठाया है न सुपात्र ढूंढने का कष्ट उठाएगा। वेश्याओं में उड़ा देगा, शराब पिएगा और पिलाएगा और तमाम दुष्कर्म इसी स्तर के करेगा और अपनी उस कमाई को नष्ट कर देगा। अगर कोई इस कमाई से भी कमाने वाला निकला तो डंका पीट पीट कर दान देगा, यश कमाएगा, यश के नीचे मौका लगा तो कुछ और कमा लेगा।
इसी कड़ी में मैं अपने जीवन के अमूल्य क्षणों के अनुभवों को, नितांत कोमल भावों को (कविता के रूप में) आप सभी स्वजनों और सुपात्रों के साथ साझा कर रहा हूं।
आपकी सभी नर्म व गर्म भावनाओं का मैं हृदय से आदर करूंगा। उन्हें प्रकाशित करने का मतलब ही होगा मेरा विनम्र आभार व स्नेहाभिवादन।
आप का
मवार्क
स्वागत है आपका....आपके जीवन के सीख और अनुभवों को जानने की उत्सुकता है।
ReplyDeleteस्वागत है ..
ReplyDelete