पोस्ट नंबर 2
(सामायिक चर्चा)
मेरी आज आपसे यह पहली मुलाकात है, वैसे तो मुझे अनगिनत लोग जानते हैं लेकिन अनगिनत का मतलब सब लोग तो नहीं है। मेरा नाम श्री टी. आर. पाण्डेय, पूरा नाम टीका राम पाण्डेय है। संक्षेप में मुझे टी.आर.पी. भी कहते हैं लोग। और जो लोग मेरे टी.आर.पी. से वाकिफ हैं वो मेरे को टिसुन राम पाण्डेय बोलते हैं। प्यार से टिसुनवा कहते हैं। जो लोग प्यार और इज्जत एक साथ देना चाहते हैं वो मुझे टिक्कू या टिक्कू जी कह कर बुलाते हैं और मेरी बातों को वो टिप्पणी का दर्जा देते हैं। लेकिन टिसुनवा कहने वाले तो मेरी बात को, मेरी राय को, मेरे मशविरे को टिपासा कह देते हैं। मेरा काम ही है टीका टिप्पणी करना। मैं जब भी कुछ कहता हूं तो पूरी ईमानदारी से दिलो-दिमाग से कहता हूं। बात तो लोगों को चुभती है, अपील करती है। कुछ लोग मेरी बात से जरूरत से ज्यादा मुतासिर भी हो जाते हैं लेकिन जिन्हें मेरी बात चुभती है वो कहते हैं देखा, टिसुनवा ने फिर एक टिपासा जड़ दिया। खैर ... यह तो मैं आप पर छोड़ देता हूं, आप मुझे कैसे सुनते हैं, समझते हैं और देखते हैं । माफ कीजिएगा, आप देख तो नहीं सकते, महसूस अवश्य कर सकते हैं।
टिसुन का अर्थ होता है निहायत कंजूस। अब ये कंजूसी कहां कहां झलकती है, इसका निर्णय आप स्वयं करेंगे। हां, छुटकऊ चाय वाले की दुकान पर अगर मुझे कोई एक प्याली चाय पिलाता है तो मैं उसे अपने टिपासे से जरूर नवाजता हूं। मेरे पास न वक्त की कमी है और न कमी है टिपासों की लेकिन यह टिपासा रिलीज करने में भी मैं कंजूसी बरतता हूं, मेरी आदत जो ठहरी कंजूसी की।
हा हा हा।
लो आज की बात बता देता हूं हमारी आपकी पहली मुलाकात है खाली न जाये।
आज सुबह जब चौबे काका ने, जो कि हमारे गांव के प्रधान भी हैं, चाय की दुकान पर मिले और मुझे चाय पिलाई तो बड़े प्यार से बोले, अरे भाई टिक्कू जी, आज का अखबार पढ़ा , दो तीन दिन से तो अमरीका ही छाया है। अमरीका क्या अमरीका का वो नया राष्ट्रपति जो है न, ओबामा। उसी की सारी खबर रहती है। मुझे तो बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि इन गोरों की बुद्धि भ्रमित हो गई है क्या, जो इन्होंने एक काले को अपना राष्ट्रपति बना दिया।
अ....... रे रे रे रे रे ... रे काका, आप भी बड़े भोले हो, कभी कोई अपना गुण धर्म थोड़े ही बदल सकता है। जब केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) में किसी भी एलीमेंट का गुण धर्म नहीं बदलता है, चाहे कितने भी प्रयोग किए जाएं और न कोई नया एलीमेंट किसी भी प्रक्रिया से बनाया जा सकता है तो भला ये गोरे कहां से बदलेंगे। ये तो सब बुरी तरीके से पिछले कई साल से पस्त हैं ओसामा से। सारा जतन करके देख लिया फिर इनको ये समझ में आया कि कांटा कांटे से ही निकलेगा, विष का इलाज विष से ही हो सकता है इसीलिए इन्होंने ओसामा को मात देने के लिए ओबामा ढूंढा है। इसका सूक्ष्म विवेचन अगली चाय की प्याली पर करूंगा लेकिन इतना बता देता हूं कि ये बहुत बड़ी होशियारी गोरों ने दिखाई है।
From the desk of : MAVARK
स्वागत है टी आर पी जी आपका इस चिट्ठा जगत में..कहीं आप्के आगमन से यहाँ भी मीडिया टाईप कोहराम तो नहीं मच जायेगा आपके चक्कर में. जरा ध्यान रखियेगा और कृपा बना रखियेगा. बस, निवेदन भर है. :)
ReplyDeleteकोहराम में हराम भी है
ReplyDeleteकोहरा भी है
जिसका छंटना जरूरी है
लेकिन आश्वस्त हूं
इसमें राम की
मौजूदगी को लेकर
कि कुछ भी हो
विचार हो, विमर्श हो
पर कोहराम न होगा
रावण भी छिपा बैठा हो
शायद, पर राम हैं तो
काहे का कोहरा
सब छंट जाएगा
निकलेगा सुनहरी सवेरा।
वाह। अगली पोस्ट का इंतजार है।
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