Monday, January 26, 2009

अपराध बोध

पोस्‍ट नंबर:  4 

जिनके इशारों पर मैं चलाता रहा पत्‍थर, 
उनकी मुस्‍कराहटों के पहचान ये पत्‍थर ।
जब लौट कर आये मेरे लिये,
त‍ब भी वे मासूमियत से मुस्‍कराते रहे।

मैं तड़पता रहा दोनों दर्दों* से,
वे मुस्‍कराते रहे आम हमदर्दों से

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* लौटे हुये  पत्‍थरों की चोट और उनकी मुस्‍कराहट का दर्द 


मनन : कहीं हम किसी के बहकावे में या आदेश पर कुछ ऐसा तो नहीं कर रहे,
            जिसके लिए हमें बाद में ग्‍लानि हो। 

From the desk of :  MAVARK

6 comments:

  1. गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
    बढ़िया कविता लिखी है।
    घुघूती बासूती

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  2. मनन सारगर्भित है. बहुत उम्दा.

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  3. bahut pate ki baat hai ..............
    Ab to PATHAR ko ye samjhna he hoga ki har haal mein choot usse khud per he khani hai.

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  4. मुस्‍कराहट भी दर्द देती है

    पहली बार जाना।

    फलक को व्‍यापक बनाने

    के लिए मार्ग नया दिया।

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  5. dard aur muskurahat ka to purana rishta hai...!!
    aur dard bhari muskurahat ka ehasas sirf wahi kr sakta hai jo dard ko dard ki hadh tak jakar...mehsus kr paya ho...

    welcome to blog...zabardast hai..!!

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  6. One of the best effect of any poetry is to give a very very soft touch to our deepest and softest feelings of our hearts. If additionally it is giving some enlightment then really it is wonderful.Well said with most simple words mr.mavark ji.

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