Monday, September 15, 2014





!!! आवारगी ! !!
दिल ढूंढता है आज ऐसी आवारगी,
जिसमे मैं मस्त तो रहूँ लेकिन,
मुझे कोई आवारा न समझे !
बहूं मै दर-बदर हर रोज़ मस्ती में ,
मगर कोई, दर्द का दरिया न समझे !
किनारे पास हों अपने मगर ,
दिल कभी उनको सहारा न समझे !
टूट कर , बिखर कर भी, हाथ ना आऊँ,
जमाना लाख खोजे हर सुबह हर शाम मुझको,
मगर हर रोज़ वो मुझको कभी खोया न समझे !
(नीरेश शाण्डिल्यायन -15-09-2014)