Saturday, August 29, 2009

बेमौसम की होली



पोस्‍ट नंबर - 19
बेमौसम की होली
बीजेपी की टोली
1. हम आप सभी होली खेलते हैं, एक दूसरे पर रंग डालते हैं
गुलाल लगाते हैं, कीचड़ फेंकते हैं, गोबर फेंकते हैं,
कीचड़ में‍ छिपाकर कंकड़ मारते हैं, बहाने से धक्‍का दे देते हैं
और मौका मिलते ही औंधे मुंह पटक देते हैं!
कभी कभी थूक देते हैं , और कभी कभी ........................
क्‍योंकि हम होली अपने अपने मानसिक स्‍तर के अनुसार ही खेलते हैं
2. होली ज्‍यादातर अपने अपने गुट में ही खेली जाती है
ये बात और है कि आपकी होली देखकर दूसरे मजा लेते हैं
लेकिन मजा भी अपने अपने मा‍नसिक स्‍तर के अनुसार ही लेते हैं
आशा है आप भी आजकल की बेमौसम की होली को देख रहे होंगे, पर मुझे नहीं मालूम कि आप मजा ले रहे हैं या दुखी हो रहे हैं ।
3. कभी कभी हम लोगों को अपने अतीत के पन्‍नों में खोई हुई कुछ बेहद दिलचस्‍प और शिक्षाप्रद यादें ताजा हो जाती हैं।
एक बार कुछ अनपढ़, उजड्ड लोगों ने ऐसी होली खेली कि सबके कपड़े तक फट गये केवल कीचड़ ही उनकी लज्‍जा निवारक बनी थी !
शुक्र है उस गुट के सभी लोगों ने एक दूसरे पर खूब गीली काली और बदबूदार कीचड़ फेंकी थी
दुनिया की नजरों में तो वे नंगे थे लेकिन उनको लग रहा था कि कीचड़ की मदद से उनका
नंगापन छिपा हुआ है क्‍योंकि वो बदबूदार कीचड़ के आदी बनते जा रहे थे।
उसी में उन्‍हें सब गुण नजर आ रहे थे।
होली में जोश होता है, जुनून होता है,
एक दूसरे के प्रति संवेदनहीनता नहीं होती। उम्र का बंधन नहीं होता।
From the desk of : MAVARK
* वैसे तो मैं किसी भी पार्टी या गुट के बारे में कुछ लिखना पसंद नहीं करता लेकिन जब कुछ ऐसा हो रहा हो जिसका असर पूरे देश पर पड़ रहा हो और पूरा विश्‍व हंस रहा हो तब कुछ न कुछ कहना ही पड़ता है।

Friday, August 14, 2009



POST NO. 18
WISHING YOU ALL A VERY VERY HAPPY INDEPENDENCE DAY
सरहद तक आंगन है
हम धरती के फूल, गगन पावन माटी चन्‍दन है,
देश एक परिवार हमारा,सरहद तक आंगन है।
सतरंगे सुमनों की शोभा , सब धर्मों की क्‍यारी,
मानवता की महक सभी में देश एक फुलवारी।
नाचें, गायें, खेलें, कूदें , भरें सभी किलकारी,
इस माटी को नमन करें, है जो प्राणों से प्‍यारी।
द्वेष,घृणा या लोभ सरीखे, भाव न मन में लायें,
कभी न मांगे, कभी न छीनें, पौरुष से उपजाएं।
श्रम आधार और समता ही जीवन शैली होगी,
कभी न हम से,मानवता की चादर मैली होगी।
ऐसा दृढ़ संकल्‍प हमारा , जीवन में अपनायें,
सबके लिए खुशी-खुशहाली इस जगती पर लाएं।
(1986)
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BY: From the desk of MAVARK

Wednesday, August 12, 2009

स्‍वप्‍न और देश


पोस्‍ट नंबर 17

स्‍वप्‍न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।
सपनीली नव कलिका से ही
ठूंठ हरा हो कर भरता है।

जीवन के कोटर में विषधर,
फण को ओट किए बैठे हैं।
सजग चुनौती की मुद्रा में
पारधि प्रत्‍यंचा ऐठें हैं।
मेरी मौत भले हो जाए,
जन विश्‍वास नहीं मरता है।
स्‍वप्‍न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।

दिया न जिनके घर जल पाया,
चूल्‍हे में बिस्‍तुइया सोई।
तनिक भात के लिए ठुनकती,
मां की कोख बालिका रोई।
अन्‍न भरे भण्‍डार कहरते,
उसका पेट नहीं भरता है।
स्‍वप्‍न अधूरे रह जाने से
कोई देश नहीं मरता है।

टिटुआ है हथियार बन गया,
संसद के गलियारे में भी।
मड़ई उसकी जले बारहा,
प्रतिनिधि पंच सितारों में ही
संसद के गलचौरे से भी ,
उसका मौन असह्य लगता है।
स्‍वप्‍न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।

तुम सपने को दुत्‍कारो पर,
मानव की लाठी है सपना।
है जिजीविषा का सम्‍बल यह,
बच्‍चों की किलकारी सपना।
सपने मर जाने से शायद,
कोई देश मरा करता है।
स्‍वप्‍न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।

सभार : काव्‍य पुस्‍तक
"पर अभी संभावना है"
लेखक डॉ. सूर्यपाल सिंह (http://www.purvapar.com/) ई मेल drspsingh@purvapar.com

Monday, August 10, 2009

पर अभी संभावना है


पोस्‍ट नंबर 16

दांत पैने हो गए हैं,
और पंजे कस गए हैं,
रहनि चिरइन की कठिन है
पर अभी संभावना है।

रात भीगी तम घना है,
अन्‍धड़ों का रौ बना है,
लौ दिया की है कठिन पर,
प्रात की संभावना है।

धनु अहेरी के खिंचे हैं,
अंग भर कांटे चुभे हैं,
पंख चिरइन के खुले हैं,
इसलिए संभावना है।

पीर चिरइन की गुनी है,
उठ पड़ी पूरी अनी है,
पीर की कहनी कठिन पर,
शब्‍द हैं संभावना है।

सभार : "पर अभी सम्भावना है" नामक पुस्तक से ! लेखक : Dr. S. P. Singh

ई मेल drspsingh@purvapar.com

Saturday, August 8, 2009

मेरा मन

पोस्‍ट नंबर 15

मैं (मेरा मन) तुम्‍हारे शहर से
कोरा लौट रहा हूं।
मुझे कोई छू न सका, पा न सका
सब के सब व्‍यस्‍त थे अपने में
सब के सब मस्‍त थे केवल अपने में।

फिज़ा में रश्‍क था, रंज था,
खुशी थी - बेखुदी थी,
किसी के दामन के दो चार बूंद आंसू भी
अफसोस है कि मेरे लिये नहीं थे।

सहमे - सहमे सोच-सोच कर
फूंक - फूंक कर कदम रखते हुये शब्‍द
मुझे छूते हुये डर रहे थे।
जाने-अनजाने वे सभी लोग
अपनी-अपनी बेइमानी पर मर रहे थे।

रो रहा था वो (उनका) लावारिस गुनाह
क्‍योंकि उसे कोई भी खुले आम
अपना कहने को तैयार न था।
लेकिन मात्र यही ऐसा मंजर था
जो सबको परेशान किये था।

और मेरे जैसा आदमी
हर नकाब पड़े चेहरे की असलियत को
बार-बार देख कर
न रो रहा है, न हंस रहा है,
जब हमेशा-हमेशा के लिए
मैं तुम्‍हारे शहर से लौट रहा हूं।

नोट : बेचारा गुनाह हमेशा लावारिस ही होता है।

From the desk of : MAVARK

Sunday, March 22, 2009

चुनाव एक यज्ञ

पोस्‍ट नंबर 14 

चुनाव एक यज्ञ 

(सामयिक चर्चा)

 

चुनाव और हम ब्‍लॉगर्स की जिम्‍मेदारी

  चुनाव एक यज्ञ है।  इस यज्ञ में वो सब लोग जो वोट देने के अधिकारी हैं, यज्ञ करने वाले हैं और जो अभी वोट देने की उम्र तक नहीं पहुचे हैं वे यज्ञ में सम्मिलित ऐसे सदस्‍य हैं जो इससे ज्ञानार्जन और पुण्‍य दोनों अर्जित कर रहे हैं।

 

आज किसको वोट दिया जाए और किसको न दिया जाए, ये एक यक्ष प्रश्‍न बन गया है। हम कोई सीधा सादा फार्मूला नहीं लगा सकते कि जो ऐसा है उसको वोट दो और जो ऐसा नहीं है उसको वोट न दो। जो इस पार्टी का है उसको वोट दो और जो उस पार्टी का नहीं है उसको वोट न दो। आज का यह सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है कि हम किस प्रत्‍याशी को जिताएं।

  हम सभी ब्‍लॉगर्स की भी यह नैतिक जिम्‍मेदारी है कि इस यज्ञ में शरीक हों और इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाये कि आखिर हम किस तरह के लोगों को चुनकर लोकसभा में भेजें। क्‍योंकि एक गलत चुना हुआ नुमाइंदा सदन में कितना व्‍यवधान पैदा करता है, एक बेईमान मंत्री (सुखराम जैसे लोगों को याद करो) देश को कितना बड़ा नुकसान पहुचाता है इस का लेखा जोखा  करना आसान नही है। यहां तक कि सदन के लिए चुने हुए व्‍यक्ति द्वारा दिए हुए एक एक बयान, एक एक स्‍टेटमेंट के अपने मायने होते हैं और अगर वो गलत हैं, मूर्खतापूर्ण हैं, गैर जिम्‍मेदाराना हैं तो पूरे देश का और समाज का अतिशय अहित होता  है।

  पिछले सदन के कार्य  काल में, हम सभी ने यह जरूर महसूस किया होगा कि सदन के समय की खूब बर्बादी हुई है, सदन बहुत ही कम समय के लिए चला है (पिछले सदनों की अपेक्षा बहुत कम समय तक चला है) और सदन में गंभीर से गंभीर विषयों पर चर्चा या विचार विमर्श बौद्धिक स्‍तर पर नहीं हुआ है। खाली सहमति और असहमति के नारे लगाए गए हैं। कार्यवाही में बाधा पहुचाई गई है। और कई बार तो ऐसा लगा है कि पूरे सदन को गुमराह करने की कोशिश की गई है।

  सदन कोई बच्‍चों के खेल का मैदान नहीं है।  कुछ विवेकशील लोगों ने यह सोचा कि यदि सदन की कार्यवाही का टी वी पर जीवंत प्रसारण किया जाएगा तो शायद सदन के सदस्‍यों को इस बात का डर रहेगा कि हमें पूरा देश देख रहा है लेकिन यहां तो हालत ये हो गई कि किसी बेशर्म का लोगों ने एक बार कपड़ा उतार दिया तो अब वो कपड़ा ही नहीं पहनना चाहता। हां, सदन में जो शर्मदार सदस्‍य हैं, वे विचारे या तो चुप बैठे रहते हैं या आंखें बंद किए रहते हैं।

हमें अपने गरिमामय राष्‍ट्र के  सदन के लिए जिम्‍मेदार और विवेकशील सदस्‍य चाहिएं। हमारे सोमनाथ दादा ने ठीक ही कहा है कि तुम सब लोग इस बार हार जाओगे। उनका तात्‍पर्य सीधे सीधे सदस्‍यों की गैर जिम्‍मेदाराना हरकतों और सदन के गरिमा को कम करने के कारणों से ही रहा होगा। क्‍योंकि यह श्राप किसी विशेष पार्टी या किसी विशेष सदस्‍य के नहीं ये सिर्फ उन लोगों के लिए है जिन लोगों ने सदन की गरिमा को घटाया है।

  अंत में, मैं यही कहूंगा कि हम सब अपने अपने ज्ञान के आधार पर तजुर्बे के आधार पर ऐसे छोटे छोटे सूत्रों का प्रतिपादन करें जिससे हमारे समाज के हर व्‍यक्ति को यह संदेश जाए कि वो किसको वोट दे और किसको वोट न दे।

 

From the desk of : MAVARK 

 

 

Sunday, March 15, 2009

TEACHER

POST NO. 13


GOOD TEACHER



WANT TO BE A VERY GOOD TEACHER ?

PLAY THE ROLE OF A MOTHER.

SHE IS THE GREATEST TEACHER ON EARTH.

TEACHES US ALL, SINCE OUR BIRTH.

WITH EYES ON EYE AND OPEN HEART.

SHE TEACHES US ALL, SHE BECOMES CHILD.

WITH BROKEN WORDS AND VOICE MILD.

WHAT SO EVER SILLY QUESTIONS,CHILD ASKS.

SHE ANSWERS ALL, NEVER TAKES TASK.

IF CHILD IS NAUGHTY, RELUCTANT TO READ.

SCOLDING AND BEATING SHE NEVER NEED.

SHE TURNS THE CHILD, SOME HOW OR OTHER.

TOWARDS HERSELF, THAT IS THE MOTHER.

SO, TO BE A VERY GOOD TEACHER.

BE A MOTHER, BEHAVE A MOTHER.

BE A MOTHER, BEHAVE A MOTHER.


संकलित  Presented by: MAVARK


Wednesday, March 11, 2009

होली

Post No. 12 



         !!होली!!

                                                           

रंगों की सुघड़ रंगोली,

राग भरी कोयल सी बोली 

फागुन की मधुर ठि‍‍ठोली, 

प्रेम सृजन समता ममता में,  

आओ सब को रंग दूं ,  

और मना लूं होली!  

 

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WISHING TO ALL BLOGGERS VERY VERY HAPPY HOLI.

 

 

From the desk of : MAVARK

Thursday, March 5, 2009

खून का खुलासा

POST NO. 11

खून का खुलासा
                     

 आइये टिक्‍कू जी , आपको चाय पिलवाते हैं। अरे.....! छुटकऊ जरा बढिया दो प्‍याली चाय बनाओ तो।
हां टिक्‍कू दादा, आप उस दिन तो बिना कुछ बताये चले गये। आज तो कम से कम बता दो, अपने द्वारा किये  खून के बारे में।
टिक्‍कू : चलो भाई वादा किया है तो वो रहस्‍योद्घाटन करना ही पड़ेगा। लो मैं तुम्‍हें बता रहा हूं अपने एक और खून के बारे में। ध्‍यान से सुनो, बोलना मत। अगर बीच में बोल दिये तो उठकर चला जाऊंगा और तुम्‍हारी चाय भी  नहीं पिऊंगा।
टिक्‍कू जी ने आंख बंद कर ली और बोलना शुरू किया :

 !! एक खून और  !! 
क्‍या कभी आपने
किसी का खून किया है ?
एक जीते जागते इंसान को
यादों में बदल कर !
उसके वर्तमान को पूर्णतय: निरर्थक बना कर,
अपनी भावनाओं में ठहराव लाकर,
अपनी सोच को ,
उसके प्रति पूर्ण रूप से निष्क्रिय कर !
आने वाले हर नये दिन में से
उसके प्रत्‍येक अर्थपूर्ण अस्तित्‍व को
निकाल कर,
अपनी दुनिया से उसको
पूर्णत: निष्‍कासित कर।

इस तरह दोस्‍तों मैंने विवशता में ,
एक बार फिर खून कर डाला है।
मरने के बाद जीव कहां जाता है,
दूसरी दुनिया में क्‍या करता है,
हम सबको इससे क्‍या सरोकार ?

आज जब मैंने उसका खून कर डाला है,
तो वो [इसी दुनिया में] कहां जायेगा,
क्‍या करेगा,
मुझे क्‍या सोचना, क्‍या करना ?

उसके प्रति कितना क्रूर व निर्लिप्‍त हूं मैं,
सहसा किसी को विश्‍वास नहीं होगा।
लोग शव का कम से कम आदर तो करते हैं ,
झुक कर पुष्‍प चढ़ाते हैं, कंधों पर ले जाते हैं ,
शव की सद् गति हेतु, अग्नि को समर्पित कर,
किसी भी संभावित दुर्गति से बचाते हैं ।

जबकि मैंने तो उसे मार कर
ऐसे ही छोड़ दिया है,
ताकि मैं देख सकूं उसे ढोते हुये,
स्‍वयं के शव को ।
पुष्‍पों की कौन कहे,
नजर बचा कर उसके नाम पर
थूक देंगे वो लोग,
जोकि आज की परिभाषा में छोटे आदमी हैं,
आम आदमी हैं, सताये हुये आदमी हैं!

मित्रो अब आप ही बतायें,
इस बड़े आदमी के खून का,
क्‍या अंजाम होगा ?
कहां की अदालत होगी ?
और कहां फैसला होगा ?

मैंने तो एक बार फिर,
खून कर डाला है
एक ऐसे आदमी का,
जो बोझ है समाज पर।

अगर तुम भी पहचान सकते हो ,
तो रोज करो एक खून ऐसा ही।
एक खून ऐसा ही।
एक खून ऐसा ही।
एक खून ...........ऐसा .......ही.............।
एक............. खून.................. ऐसा.......................................।

और फिर टिक्‍कू जी बिना चाय पिये चले गये, बिल्कुल चुप गम्भीर और उदास .......।
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From the desk of : MAVARK

Wednesday, March 4, 2009

खून

POST No. 10
   खून..... !  
अरे टिक्‍कू जी आप तो ओसामा की चर्चा के बाद भूमिगत हो गये। कहां चले गये थे इतने दिनों के लिये। बड़े मायूस दिख रहे हो। इतनी उदासी और चुप्‍पी का सबब ? अरे भई कुछ तो बोलो।
क्‍या बताऊं मित्र आप खुद बताओ कोई भी आदमी खून करके खुश रह सकता है क्‍या ?
      क्‍यों आजकल तो यही हो रहा है खून करो और नाम कमाओ। अब तो इस नये जमाने की चाल यही है। एक दो नहीं हजारों को मारो और मरवाओ और सब करने के बाद अपने को उचित ठहराते रहो किसी न किसी तर्क के द्वारा।
टिक्‍कू : अरे भाई मैं उन लोगों में नहीं हूं कि जो हजारों खून करके खुश और उन्‍नत मस्‍तक होकर घूमते नजर आते हैं। मैं तो यहां दो चार में ही बेहाल हो जाता हूं। अभी इस एक और खून के बाद मेरा इतना बुरा हाल है कि मैं दो दिन तक तो सो ही नहीं सका और आज भी उस आदमी के लिये मुझे पूरी हमदर्दी है मगर क्‍या करूं यह काम मैंने तो बेहद मजबूरी में ही किया है।
मित्र : अरे तुमने खून कर डाला और खुलेआम कहते फिर रहे हो कि मैंने एक और खून कर डाला। न तो तुम किसी संगठन के सरगना हो और न ही किसी राष्‍ट्र के राष्‍ट्राध्‍यक्ष तुम कैसे उचित ठहराओगे अपने खून को। तुम्‍हें पुलिस का जरा भी डर नहीं। ये बताओ कि पुलिस को अभी तक पता चला कि नहीं, वो तो तुम्‍हारे पीछे पड़ी होगी।
टिक्‍कू : पता चला या नहीं, यह पता करना मेरा काम थोड़े ही है। जब उसे (पुलिस) पता चलेगा तो वो स्‍वयं जो उचित समझेगी करेगी। गिरफ्तार करेगी, अदालत को सौंपेगी या वो भी मेरा खून कर देगी। लेकिन मैं कोई ऐसा वैसा खूनी नहीं हूं जो खून करूं फिर इधर उधर भागता फिरूं या दलीलें पेश करूं। मैंने खून किया है तो खुलेआम कुबूल करता हूं और अगर कोई सजा मेरे लिए तजबीज की जायेगी तो मैं उसे कुबूल भी करूंगा। लेकिन मित्र आज तक मेरे द्वारा किये गये पिछले खूनों के लिए तो कोई मुझे सजा नहीं दे पाया है।
मित्र : तुम कैसी विरोधाभासी बातें कर रहे हो। एक आम आदमी तो दस रुपये चुराकर भी बच नहीं सकता और तुम कहते हो कि खून करने के बाद भी तुम्‍हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया। मुझे सारा माजरा सही सही बताओ, खोल कर बताओ।
टिक्‍कू : ठीक है, यह रहस्‍योद्घाटन मैं तुम पर अपनी अगली मुलाकात में कर दूंगा। यह मेरा वादा रहा। लेकिन आज मुझे जाने दो मेरा मन बहुत उदास है। मैं अब ज्‍यादा बोलने के मूड में नहीं हूं। नमस्‍कार।  

From the desk of : MAVARK

Saturday, February 21, 2009

एक उपन्‍यास

पोस्‍ट नंबर 9
एक उपन्‍यास
ऊंची कोठी, ढेरों दौलत,
बड़ी-बड़ी कारों की शान,
एक नहीं तेरह दरबान,
सबके सब सधे हुये,
मैडम से डरे हुये।

कौन कहां से, क्‍यों, क‍ब आया,
किसने कैसा रंग जमाया ?
कभी किसी ने जान न पाया,
कोई किसी से पूछ न पाया।

चला कई वर्षों तक धंधा,
लोगों का अनुभव था मंदा।
तभी समय ने करवट बदली,
लोग फिर गये, साये गुम गये।

दरबानों ने बिस्‍तर बांधे,
कोठी के कुत्‍तों ने भी,
अपनी अपनी आदत बदली,
गली मोहल्‍ले में फिर-फिर कर,
लगे चाटने जूठी पतली।

और एक अरसे के बाद,
उसी गली के सारे कुत्‍ते,
भौंक उठे हो कर खूंखार।
बच्‍चे भाग चले निज घर में,
चीखें मार मार होकर भय त्रस्‍त।

लगी बरसने दरवाजों पर,
तभी पत्‍थरों की बौछार।
मैडम अपनी आज गली में,
नंगी-बौराई घूम रही थी। 
From the desk of : MAVARK

Tuesday, February 17, 2009

एकाकीमन

POST NO. 8
एकाकीमन

 

  • हम सभी हमेशा इस प्रयास में रहते हैं जो हमें नहीं पसंद है उससे मुक्‍त हो जायेंजिसे हम सुख का कारक नहीं मानते हैं उससे मुक्‍त हो जायें, जिसका साथ मुझे सुखमय नहीं लगता उससे मुक्‍त हो जायें। मुक्‍त होना एक प्रक्रिया है लेकिन ऐसी प्रक्रिया जो होने के साथ पुन: दूसरी प्रतिक्रिया को जन्‍म दे देती है, तो निश्‍चय ही हर मुक्ति के पीछे तमाम प्रतिक्रियाओं का जन्‍म होगा और हम मुक्‍त किए जाल से छूट कर प्रतिक्रियाओं के नये जाल में जकड़ जायेंगे।

  • आज का युवक विद्रोह की राह पर है। पग पग पर विद्रोह उसका सबब बन गया है। घर में विद्रोह, समाज से विद्रोह, व्‍यवस्‍था से विद्रोह और यहां तक कि अपने से विद्रोह करने में भी वो गुरेज नहीं करता। विद्रोह का जाल बढ़ता जा रहा है और आज का युवक उसमें उलझता जा रहा है। विद्रोह से न तो कोई समाधान मिलता है और न मुक्ति।

  • मुक्ति का उद्भव  तभी होता है जब आप सोचते हैं, जब आप देखते हैं और कुछ करते हैं। विद्रोह के द्वारा कदापि नहीं। त्‍वरित उदाहरण के रूप में जैसे हम किसी खतरे को देखते हैं सोच विचार, बहस विवाद और  संशय के बिना तुरंत रक्षा की क्रिया शुरू हो जाती है। इसका अर्थ ये हुआ कि देखना और क्रिया तो मूल है, सोचना तो जब संभव होगा, जब समय होगामुक्‍त होना , एकाकीपन, विद्रोह ये मन की आंतरिक दशाएं हैं जो किसी बाहरी उत्‍तेजना और  किसी ज्ञान पर निर्भर नहीं हैं और न ही किसी अनुभव और निष्‍कर्ष का प्रतिपाद हैं। हममें से अधिकांश लोग आंतरिक रूप से कभी भी एकाकी नहीं होते। उन्‍हें एकाकी  होने में डर लगता है। उन्‍हें हमेशा किसी का साथ चाहिए। वैसे भी एकाकी होने के लिए अथाह आत्‍मविश्‍वास कीआवश्‍यकता होती है।

  • एकाकी होने में बाधक हैं हमारी स्‍मृतियां, हमारे संस्‍कार, बीते हुए कल की तमाम घटनाएं। हमारा मन तो इन सभी बातों से कभी रिक्‍त ही नहीं हो पाता। तो एकाकी कैसे होगा? वस्‍तुत: एकाकी होना एक निष्‍कलुष मन:स्थिति है। निष्‍कलुष मन:स्थिति, मन को दुखों से मुक्‍त कर देती है। विद्रोह शांत हो जाता है। भय तिरोहित हो जाता है। हमें एक संपूर्णता का अनुभव होता है। ऐसी संपूर्णता जिसमें न तो अहं है और नही कोई दीनता।


From the desk of : MAVARK

   Posted by : MAVARK

 

 

Saturday, February 7, 2009

क्षितिज


               पोस्‍ट नंबर:  7 






क्षितिज
मैं जानता हूं ! 
आज भी जब तुम हार जाते हो,
थक जाते हो, खीज जाते हो, अपने से,
तब मेरी ओर आते हो,
सारी दुनिया को छोड़ कर,
किसी समंदर के तट से,
मेरी ओर निहारते हो,  
एक अबोध बालक की तरह,
और तब मैं तुम्‍हें प्रदान करता हूं,
अपार मानसिक ऊर्जा,
अद्भुत उत्‍साह।
जिसे ले कर,
तुम लौट जाते हो,
एक नई उमंग के साथ।
लेकिन जैसी कि तुम्‍हारी आदत है,
तुम फिर व्‍यस्‍त हो जाते हो,
निर्माण की प्रक्रिया  में।
बिना अपने पूर्वजों की हिदायतों को समझे,
इंकार कर देते हो मानने से लक्ष्‍मण रेखाओं को।
बिगाड़ने लगते हो,प्रकृति के रूप रंग और सौंदर्य को,
अपना तमाम अमूल्‍य समय बर्बाद करते हो,
आदमी को शैतान और शैतान को कबूतर बनाने में।
गाय को बकरी, ऊंट को खच्‍चर,
बिल्‍ली को चूहे का दोस्‍त और,
चूहे को बिल्‍ली का थानेदार बनाने में।
युगों का इतिहास है मेरी आंखों में,
अनेक प्रलय देखे हैं मैंने,
देखी है तुम्‍हारी तस्‍वीरें,
तुम्‍हारा भूत और भविष्‍य,
दोनों मुझसे छुपा नहीं है।
तुम केवल अपने आज,
को देख पा रहे हो,
मैं सत्‍य हूं और छल भी हूं,
मुझमें अद्भुत आकर्षण है।
तुम किसी एटम बम के सहारे,
मुझको नहीं पा सकते।
तुम्‍हारा कोई नापाम मुझे जला नहीं सकता,
कोई प्रक्षेपास्‍त्र मुझे छू तक नहीं सकता।
तुम कितने असहाय हो,
ना मुझे पा सकते हो,
ना छू सकते हो,
तुम्‍हारी बड़ी से बड़ी कारीगरी को,
मैं हमेशा मुंह चिढ़ाता रहता हूं,
फिर भी तुम्‍हारी आकांक्षा का केन्‍द्र,
तुम्‍हारे आकर्षण का केन्‍द्र,
मैं क्षि‍तिज,
तुम्‍हें कभी दुत्‍कारता नहीं हूं।

आओ मेरी ओर एक बार फिर आओ,
एक ईमानदार कोशिश करो,
मुझे देखने की,
अपनी बंद आंखों से।

जब तुम मुझे अपनी बंद आंखों से,
देखने लगोगे, तब मैं तुम्‍हें दूंगा,
अपार सुख, अद्भुत शांति,
और असीमित परन्‍तु नियंत्रित ऊर्जा।
तब तुम,
जैसी कि तुम्‍हारी आदत है,
एक बार फिर तुम लौटोगे,
नये निर्माण के लिये,
लेकिन तब तुम सृजन कर सकोगे
एक नये युग का।

मैं क्षितिज, युगों पहले था,
आज भी हूं और कल भी रहूंगा,
मैं शाश्‍वत हूं तुम मुझे, नकार नहीं पाओगे कभी,
जैसे कि हर सत्‍य को,
आज तक कोई नकार नहीं सका।

शाश्‍वत बनने के लिए तुम्‍हें,
आना ही होगा मेरी शरण में,
अनन्‍त की शरण में। 
From the desk of: MAVARK 

Monday, February 2, 2009

आपसे दो शब्‍द


पोस्‍ट नंबर: 6 
   

  जो कुछ संसार से सीखता हूं, महसूसता हूं, अनुभव करता हूं वही लिखता हूं। स्‍वांत: सुखाय लिखताहूं अपने सीखे हुए पाठों को याद रखने के लिए लिखता हूं। भोगे हुए  क्षणों को जो नहीं भूले जाते भुलाने के लिए लिखता हूं और जिन जिन क्षणों को बार बार याद करना चाहता हूं उन्‍हें हमेशा हमेशा हृदय में बसाने के लिए लिखता हूं।  जैसा कि मेरे एक गीत में है : कौन आ गया आज हृदय में। अगर लेखकी की जिंदगी के 42 वर्ष बिना छपास (बिना  छपने की ललक) के  गुजर सकते हैं तो शेष अगले ज्‍यादा से ज्‍यादा 20 वर्ष क्‍यों नहीं गुजर सकते?
लेकिन दोस्‍तों सबकी जिंदगी में एक वक्‍त ऐसा आता है जब वो अपनी कमाई को  दूसरों में बांटना चाहता है और इसके लिए वो पात्र ढूंढता है, लेकिन यह पात्र कैसा  होगा ये ज्‍यादातर निर्भर करता है कि उसने कमाई कैसे करी है। गाढ़ी मेहनत की कमाई  होगी तो पूरी सावधानी से, मनोयोग से सुपात्र ढूंढेगा, सुपुत्रों को देगा,  सुपोत्रों को देगा, सहोदरों को देगा, स्‍वजनों को देगा वो भी न मिले तो सच्‍चरित्रों को देगा, सज्‍जनों को देगा वो भी न ढूंढ पाया तो आंख मूंदकर जरूरतमंदों को दे  देगा। और अगर फोकट की या मुफ्त की कमाई होगी, सस्‍ती कमाई होगी तो मुफ्त में ही उड़ाएगा,  न कमाने में उसने कोई कष्‍ट उठाया है न सुपात्र ढूंढने का कष्‍ट उठाएगा। वेश्‍याओं  में उड़ा देगा, शराब पिएगा और पिलाएगा और तमाम दुष्‍कर्म इसी स्‍तर के करेगा और  अपनी उस कमाई को नष्‍ट कर देगा। अगर कोई इस कमाई से भी कमाने वाला निकला तो डंका पीट पीट कर दान देगा, यश कमाएगा, यश के नीचे मौका लगा तो कुछ और कमा लेगा।
इसी कड़ी में मैं अपने जीवन के अमूल्‍य क्षणों के अनुभवों को, नितांत कोमल  भावों को (कविता  के रूप में) आप  सभी स्‍वजनों और सुपात्रों के साथ साझा कर रहा हूं।
आपकी सभी नर्म व गर्म भावनाओं का मैं हृदय से आदर करूंगा। उन्‍हें प्रकाशित  करने का मतलब ही  होगा मेरा विनम्र आभार व स्‍नेहाभिवादन।
आप का
मवार्क