Sunday, March 22, 2009

चुनाव एक यज्ञ

पोस्‍ट नंबर 14 

चुनाव एक यज्ञ 

(सामयिक चर्चा)

 

चुनाव और हम ब्‍लॉगर्स की जिम्‍मेदारी

  चुनाव एक यज्ञ है।  इस यज्ञ में वो सब लोग जो वोट देने के अधिकारी हैं, यज्ञ करने वाले हैं और जो अभी वोट देने की उम्र तक नहीं पहुचे हैं वे यज्ञ में सम्मिलित ऐसे सदस्‍य हैं जो इससे ज्ञानार्जन और पुण्‍य दोनों अर्जित कर रहे हैं।

 

आज किसको वोट दिया जाए और किसको न दिया जाए, ये एक यक्ष प्रश्‍न बन गया है। हम कोई सीधा सादा फार्मूला नहीं लगा सकते कि जो ऐसा है उसको वोट दो और जो ऐसा नहीं है उसको वोट न दो। जो इस पार्टी का है उसको वोट दो और जो उस पार्टी का नहीं है उसको वोट न दो। आज का यह सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है कि हम किस प्रत्‍याशी को जिताएं।

  हम सभी ब्‍लॉगर्स की भी यह नैतिक जिम्‍मेदारी है कि इस यज्ञ में शरीक हों और इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाये कि आखिर हम किस तरह के लोगों को चुनकर लोकसभा में भेजें। क्‍योंकि एक गलत चुना हुआ नुमाइंदा सदन में कितना व्‍यवधान पैदा करता है, एक बेईमान मंत्री (सुखराम जैसे लोगों को याद करो) देश को कितना बड़ा नुकसान पहुचाता है इस का लेखा जोखा  करना आसान नही है। यहां तक कि सदन के लिए चुने हुए व्‍यक्ति द्वारा दिए हुए एक एक बयान, एक एक स्‍टेटमेंट के अपने मायने होते हैं और अगर वो गलत हैं, मूर्खतापूर्ण हैं, गैर जिम्‍मेदाराना हैं तो पूरे देश का और समाज का अतिशय अहित होता  है।

  पिछले सदन के कार्य  काल में, हम सभी ने यह जरूर महसूस किया होगा कि सदन के समय की खूब बर्बादी हुई है, सदन बहुत ही कम समय के लिए चला है (पिछले सदनों की अपेक्षा बहुत कम समय तक चला है) और सदन में गंभीर से गंभीर विषयों पर चर्चा या विचार विमर्श बौद्धिक स्‍तर पर नहीं हुआ है। खाली सहमति और असहमति के नारे लगाए गए हैं। कार्यवाही में बाधा पहुचाई गई है। और कई बार तो ऐसा लगा है कि पूरे सदन को गुमराह करने की कोशिश की गई है।

  सदन कोई बच्‍चों के खेल का मैदान नहीं है।  कुछ विवेकशील लोगों ने यह सोचा कि यदि सदन की कार्यवाही का टी वी पर जीवंत प्रसारण किया जाएगा तो शायद सदन के सदस्‍यों को इस बात का डर रहेगा कि हमें पूरा देश देख रहा है लेकिन यहां तो हालत ये हो गई कि किसी बेशर्म का लोगों ने एक बार कपड़ा उतार दिया तो अब वो कपड़ा ही नहीं पहनना चाहता। हां, सदन में जो शर्मदार सदस्‍य हैं, वे विचारे या तो चुप बैठे रहते हैं या आंखें बंद किए रहते हैं।

हमें अपने गरिमामय राष्‍ट्र के  सदन के लिए जिम्‍मेदार और विवेकशील सदस्‍य चाहिएं। हमारे सोमनाथ दादा ने ठीक ही कहा है कि तुम सब लोग इस बार हार जाओगे। उनका तात्‍पर्य सीधे सीधे सदस्‍यों की गैर जिम्‍मेदाराना हरकतों और सदन के गरिमा को कम करने के कारणों से ही रहा होगा। क्‍योंकि यह श्राप किसी विशेष पार्टी या किसी विशेष सदस्‍य के नहीं ये सिर्फ उन लोगों के लिए है जिन लोगों ने सदन की गरिमा को घटाया है।

  अंत में, मैं यही कहूंगा कि हम सब अपने अपने ज्ञान के आधार पर तजुर्बे के आधार पर ऐसे छोटे छोटे सूत्रों का प्रतिपादन करें जिससे हमारे समाज के हर व्‍यक्ति को यह संदेश जाए कि वो किसको वोट दे और किसको वोट न दे।

 

From the desk of : MAVARK 

 

 

Sunday, March 15, 2009

TEACHER

POST NO. 13


GOOD TEACHER



WANT TO BE A VERY GOOD TEACHER ?

PLAY THE ROLE OF A MOTHER.

SHE IS THE GREATEST TEACHER ON EARTH.

TEACHES US ALL, SINCE OUR BIRTH.

WITH EYES ON EYE AND OPEN HEART.

SHE TEACHES US ALL, SHE BECOMES CHILD.

WITH BROKEN WORDS AND VOICE MILD.

WHAT SO EVER SILLY QUESTIONS,CHILD ASKS.

SHE ANSWERS ALL, NEVER TAKES TASK.

IF CHILD IS NAUGHTY, RELUCTANT TO READ.

SCOLDING AND BEATING SHE NEVER NEED.

SHE TURNS THE CHILD, SOME HOW OR OTHER.

TOWARDS HERSELF, THAT IS THE MOTHER.

SO, TO BE A VERY GOOD TEACHER.

BE A MOTHER, BEHAVE A MOTHER.

BE A MOTHER, BEHAVE A MOTHER.


संकलित  Presented by: MAVARK


Wednesday, March 11, 2009

होली

Post No. 12 



         !!होली!!

                                                           

रंगों की सुघड़ रंगोली,

राग भरी कोयल सी बोली 

फागुन की मधुर ठि‍‍ठोली, 

प्रेम सृजन समता ममता में,  

आओ सब को रंग दूं ,  

और मना लूं होली!  

 

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WISHING TO ALL BLOGGERS VERY VERY HAPPY HOLI.

 

 

From the desk of : MAVARK

Thursday, March 5, 2009

खून का खुलासा

POST NO. 11

खून का खुलासा
                     

 आइये टिक्‍कू जी , आपको चाय पिलवाते हैं। अरे.....! छुटकऊ जरा बढिया दो प्‍याली चाय बनाओ तो।
हां टिक्‍कू दादा, आप उस दिन तो बिना कुछ बताये चले गये। आज तो कम से कम बता दो, अपने द्वारा किये  खून के बारे में।
टिक्‍कू : चलो भाई वादा किया है तो वो रहस्‍योद्घाटन करना ही पड़ेगा। लो मैं तुम्‍हें बता रहा हूं अपने एक और खून के बारे में। ध्‍यान से सुनो, बोलना मत। अगर बीच में बोल दिये तो उठकर चला जाऊंगा और तुम्‍हारी चाय भी  नहीं पिऊंगा।
टिक्‍कू जी ने आंख बंद कर ली और बोलना शुरू किया :

 !! एक खून और  !! 
क्‍या कभी आपने
किसी का खून किया है ?
एक जीते जागते इंसान को
यादों में बदल कर !
उसके वर्तमान को पूर्णतय: निरर्थक बना कर,
अपनी भावनाओं में ठहराव लाकर,
अपनी सोच को ,
उसके प्रति पूर्ण रूप से निष्क्रिय कर !
आने वाले हर नये दिन में से
उसके प्रत्‍येक अर्थपूर्ण अस्तित्‍व को
निकाल कर,
अपनी दुनिया से उसको
पूर्णत: निष्‍कासित कर।

इस तरह दोस्‍तों मैंने विवशता में ,
एक बार फिर खून कर डाला है।
मरने के बाद जीव कहां जाता है,
दूसरी दुनिया में क्‍या करता है,
हम सबको इससे क्‍या सरोकार ?

आज जब मैंने उसका खून कर डाला है,
तो वो [इसी दुनिया में] कहां जायेगा,
क्‍या करेगा,
मुझे क्‍या सोचना, क्‍या करना ?

उसके प्रति कितना क्रूर व निर्लिप्‍त हूं मैं,
सहसा किसी को विश्‍वास नहीं होगा।
लोग शव का कम से कम आदर तो करते हैं ,
झुक कर पुष्‍प चढ़ाते हैं, कंधों पर ले जाते हैं ,
शव की सद् गति हेतु, अग्नि को समर्पित कर,
किसी भी संभावित दुर्गति से बचाते हैं ।

जबकि मैंने तो उसे मार कर
ऐसे ही छोड़ दिया है,
ताकि मैं देख सकूं उसे ढोते हुये,
स्‍वयं के शव को ।
पुष्‍पों की कौन कहे,
नजर बचा कर उसके नाम पर
थूक देंगे वो लोग,
जोकि आज की परिभाषा में छोटे आदमी हैं,
आम आदमी हैं, सताये हुये आदमी हैं!

मित्रो अब आप ही बतायें,
इस बड़े आदमी के खून का,
क्‍या अंजाम होगा ?
कहां की अदालत होगी ?
और कहां फैसला होगा ?

मैंने तो एक बार फिर,
खून कर डाला है
एक ऐसे आदमी का,
जो बोझ है समाज पर।

अगर तुम भी पहचान सकते हो ,
तो रोज करो एक खून ऐसा ही।
एक खून ऐसा ही।
एक खून ऐसा ही।
एक खून ...........ऐसा .......ही.............।
एक............. खून.................. ऐसा.......................................।

और फिर टिक्‍कू जी बिना चाय पिये चले गये, बिल्कुल चुप गम्भीर और उदास .......।
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From the desk of : MAVARK

Wednesday, March 4, 2009

खून

POST No. 10
   खून..... !  
अरे टिक्‍कू जी आप तो ओसामा की चर्चा के बाद भूमिगत हो गये। कहां चले गये थे इतने दिनों के लिये। बड़े मायूस दिख रहे हो। इतनी उदासी और चुप्‍पी का सबब ? अरे भई कुछ तो बोलो।
क्‍या बताऊं मित्र आप खुद बताओ कोई भी आदमी खून करके खुश रह सकता है क्‍या ?
      क्‍यों आजकल तो यही हो रहा है खून करो और नाम कमाओ। अब तो इस नये जमाने की चाल यही है। एक दो नहीं हजारों को मारो और मरवाओ और सब करने के बाद अपने को उचित ठहराते रहो किसी न किसी तर्क के द्वारा।
टिक्‍कू : अरे भाई मैं उन लोगों में नहीं हूं कि जो हजारों खून करके खुश और उन्‍नत मस्‍तक होकर घूमते नजर आते हैं। मैं तो यहां दो चार में ही बेहाल हो जाता हूं। अभी इस एक और खून के बाद मेरा इतना बुरा हाल है कि मैं दो दिन तक तो सो ही नहीं सका और आज भी उस आदमी के लिये मुझे पूरी हमदर्दी है मगर क्‍या करूं यह काम मैंने तो बेहद मजबूरी में ही किया है।
मित्र : अरे तुमने खून कर डाला और खुलेआम कहते फिर रहे हो कि मैंने एक और खून कर डाला। न तो तुम किसी संगठन के सरगना हो और न ही किसी राष्‍ट्र के राष्‍ट्राध्‍यक्ष तुम कैसे उचित ठहराओगे अपने खून को। तुम्‍हें पुलिस का जरा भी डर नहीं। ये बताओ कि पुलिस को अभी तक पता चला कि नहीं, वो तो तुम्‍हारे पीछे पड़ी होगी।
टिक्‍कू : पता चला या नहीं, यह पता करना मेरा काम थोड़े ही है। जब उसे (पुलिस) पता चलेगा तो वो स्‍वयं जो उचित समझेगी करेगी। गिरफ्तार करेगी, अदालत को सौंपेगी या वो भी मेरा खून कर देगी। लेकिन मैं कोई ऐसा वैसा खूनी नहीं हूं जो खून करूं फिर इधर उधर भागता फिरूं या दलीलें पेश करूं। मैंने खून किया है तो खुलेआम कुबूल करता हूं और अगर कोई सजा मेरे लिए तजबीज की जायेगी तो मैं उसे कुबूल भी करूंगा। लेकिन मित्र आज तक मेरे द्वारा किये गये पिछले खूनों के लिए तो कोई मुझे सजा नहीं दे पाया है।
मित्र : तुम कैसी विरोधाभासी बातें कर रहे हो। एक आम आदमी तो दस रुपये चुराकर भी बच नहीं सकता और तुम कहते हो कि खून करने के बाद भी तुम्‍हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया। मुझे सारा माजरा सही सही बताओ, खोल कर बताओ।
टिक्‍कू : ठीक है, यह रहस्‍योद्घाटन मैं तुम पर अपनी अगली मुलाकात में कर दूंगा। यह मेरा वादा रहा। लेकिन आज मुझे जाने दो मेरा मन बहुत उदास है। मैं अब ज्‍यादा बोलने के मूड में नहीं हूं। नमस्‍कार।  

From the desk of : MAVARK