
पोस्ट नंबर 17
स्वप्न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।
सपनीली नव कलिका से ही
ठूंठ हरा हो कर भरता है।
जीवन के कोटर में विषधर,
फण को ओट किए बैठे हैं।
सजग चुनौती की मुद्रा में
पारधि प्रत्यंचा ऐठें हैं।
मेरी मौत भले हो जाए,
जन विश्वास नहीं मरता है।
स्वप्न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।
दिया न जिनके घर जल पाया,
चूल्हे में बिस्तुइया सोई।
तनिक भात के लिए ठुनकती,
मां की कोख बालिका रोई।
अन्न भरे भण्डार कहरते,
उसका पेट नहीं भरता है।
स्वप्न अधूरे रह जाने से
कोई देश नहीं मरता है।
टिटुआ है हथियार बन गया,
संसद के गलियारे में भी।
मड़ई उसकी जले बारहा,
प्रतिनिधि पंच सितारों में ही
संसद के गलचौरे से भी ,
उसका मौन असह्य लगता है।
स्वप्न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।
तुम सपने को दुत्कारो पर,
मानव की लाठी है सपना।
है जिजीविषा का सम्बल यह,
बच्चों की किलकारी सपना।
सपने मर जाने से शायद,
कोई देश मरा करता है।
स्वप्न अधूरे रह जाने से,
कोई देश नहीं मरता है।
सभार : काव्य पुस्तक
"पर अभी संभावना है"लेखक डॉ. सूर्यपाल सिंह (http://www.purvapar.com/) ई मेल drspsingh@purvapar.com
dhnya hain aap
ReplyDeletedhnya hain aapke vichaar
dhnya hain aapke shabd
aur dhnya hain aapke paathak
__________uttam rachna..............badhaai !
बहुत अच्छी रचना है बधाई
ReplyDeleteअतीव प्रभावशाली
ReplyDeleteअच्छी कविता है जिसके लिए बधाई.
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