पोस्ट नंबर 14
चुनाव एक यज्ञ
(सामयिक चर्चा)
चुनाव और हम ब्लॉगर्स की जिम्मेदारी
चुनाव एक यज्ञ है। इस यज्ञ में वो सब लोग जो वोट देने के अधिकारी हैं, यज्ञ करने वाले हैं और जो अभी वोट देने की उम्र तक नहीं पहुचे हैं वे यज्ञ में सम्मिलित ऐसे सदस्य हैं जो इससे ज्ञानार्जन और पुण्य दोनों अर्जित कर रहे हैं।
आज किसको वोट दिया जाए और किसको न दिया जाए, ये एक यक्ष प्रश्न बन गया है। हम कोई सीधा सादा फार्मूला नहीं लगा सकते कि जो ऐसा है उसको वोट दो और जो ऐसा नहीं है उसको वोट न दो। जो इस पार्टी का है उसको वोट दो और जो उस पार्टी का नहीं है उसको वोट न दो। आज का यह सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है कि हम किस प्रत्याशी को जिताएं।
हम सभी ब्लॉगर्स की भी यह नैतिक जिम्मेदारी है कि इस यज्ञ में शरीक हों और इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाये कि आखिर हम किस तरह के लोगों को चुनकर लोकसभा में भेजें। क्योंकि एक गलत चुना हुआ नुमाइंदा सदन में कितना व्यवधान पैदा करता है, एक बेईमान मंत्री (सुखराम जैसे लोगों को याद करो) देश को कितना बड़ा नुकसान पहुचाता है इस का लेखा जोखा करना आसान नही है। यहां तक कि सदन के लिए चुने हुए व्यक्ति द्वारा दिए हुए एक एक बयान, एक एक स्टेटमेंट के अपने मायने होते हैं और अगर वो गलत हैं, मूर्खतापूर्ण हैं, गैर जिम्मेदाराना हैं तो पूरे देश का और समाज का अतिशय अहित होता है।
पिछले सदन के कार्य काल में, हम सभी ने यह जरूर महसूस किया होगा कि सदन के समय की खूब बर्बादी हुई है, सदन बहुत ही कम समय के लिए चला है (पिछले सदनों की अपेक्षा बहुत कम समय तक चला है) और सदन में गंभीर से गंभीर विषयों पर चर्चा या विचार विमर्श बौद्धिक स्तर पर नहीं हुआ है। खाली सहमति और असहमति के नारे लगाए गए हैं। कार्यवाही में बाधा पहुचाई गई है। और कई बार तो ऐसा लगा है कि पूरे सदन को गुमराह करने की कोशिश की गई है।
सदन कोई बच्चों के खेल का मैदान नहीं है। कुछ विवेकशील लोगों ने यह सोचा कि यदि सदन की कार्यवाही का टी वी पर जीवंत प्रसारण किया जाएगा तो शायद सदन के सदस्यों को इस बात का डर रहेगा कि हमें पूरा देश देख रहा है लेकिन यहां तो हालत ये हो गई कि किसी बेशर्म का लोगों ने एक बार कपड़ा उतार दिया तो अब वो कपड़ा ही नहीं पहनना चाहता। हां, सदन में जो शर्मदार सदस्य हैं, वे विचारे या तो चुप बैठे रहते हैं या आंखें बंद किए रहते हैं।
हमें अपने गरिमामय राष्ट्र के सदन के लिए जिम्मेदार और विवेकशील सदस्य चाहिएं। हमारे सोमनाथ दादा ने ठीक ही कहा है कि तुम सब लोग इस बार हार जाओगे। उनका तात्पर्य सीधे सीधे सदस्यों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों और सदन के गरिमा को कम करने के कारणों से ही रहा होगा। क्योंकि यह श्राप किसी विशेष पार्टी या किसी विशेष सदस्य के नहीं ये सिर्फ उन लोगों के लिए है जिन लोगों ने सदन की गरिमा को घटाया है।
अंत में, मैं यही कहूंगा कि हम सब अपने अपने ज्ञान के आधार पर तजुर्बे के आधार पर ऐसे छोटे छोटे सूत्रों का प्रतिपादन करें जिससे हमारे समाज के हर व्यक्ति को यह संदेश जाए कि वो किसको वोट दे और किसको वोट न दे।
From the desk of : MAVARK
आओ इस पर चर्चा करें। कुछ दिमाग का खर्चा करें। समय को उपयोग में लाएं। उपयोगी उम्मीदवारों को विजयी बनायें। अपना और बच्चों का भविष्य सुनहरा महकाएं। चलो अपने वोटरों को बहकने से बचाएं। पर पहले खुद तो बच जाएं। ऐसी उपयोगी मुहिम चलाएं। इतनी उपयोगी पोस्ट और इतना बढि़या विषय पर नहीं किसी ने गौर किया। यह दौर है चुनावों का। ब्लॉगर्स क्यों अपनी पोस्ट में व्यस्त हैं। जल्दी ही चुनावों के रूप में पोस्टें लगने वाली हैं। हमें अपने वोट से चयन करना है अच्छे उम्मीदवारों का। पर क्या हम मन से इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए इस उपयोगी बात पर किसी का ध्यान नहीं गया है। लेकिन जब चुनाव यज्ञ हो जाएगा और सबके हाथ जल जाएंगे। तब हम अपनी गलतियों पर पछताएंगे।
ReplyDeleteप्रिय अविनाश जी ,
ReplyDeleteधन्यबाद !
आज की जरूरत को आप ने बिल्कुल सही पह्चाना ! मैने यही सोच कर इस पोस्ट का सृजन किया है ! हम ब्लोगेर्स को अपनी बौद्धिक उपस्थिति एवम उप्योगिता सिद्ध करनी ही होगी !
बहुत सही , महत्व पूर्न बात है,
ReplyDeleteआओ सभी इस मे शमिल हो!
मनोहर सिन्ह
Well said , Mavark ji ,
ReplyDeleteIt is the moral duty of every citizen to participate in this YGNA .
Theek jAI maa ke tarj par :
JO NA AAYE ( SHAAMIL HO ) IS YGNA ME ,
MERE DESH KAA CHORE ( THIEF ) BOLO JAIHIND .
बिल्कुल अगर कुछ करना है तो अभी करना है !
ReplyDeleteस्नेहा !
हमारे यहाँ के प्रत्याक्षी तो हमें पसंद नही। फिर क्या करें सोचता हूँ फार्म नम्बर 17अ का प्रयोग कर लूँ। अगर वह फार्म दिया तो चुनाव कराने वालों ने।
ReplyDeleteसुशील जी बात में आपकी दम है
ReplyDeleteमेरा तो निर्वाचन आयोग से यह भी अनुरोध है
इस नहीं तो अगले चुनाव में
रखे यह प्रावधान
'कोई नहीं पसंद' का विकल्प भी हो
और अगर उसे मिलें सर्वाधिक मत
(कुल वोट 100
कुल उम्मीदवार 3
डाले गए मत 80
सर्वाधिक 'कोई नहीं पसंद' 32
राम. प्रत्याशी 20
कृष्ण. प्रत्याशी 16
सुदामा . प्रत्याशी 12
तो रद्द करें चुनाव,
पहले प्रत्याशियों को कर दें किनारे (ब्लैकलिस्ट)
और चुनाव हों दोबारा
नए प्रत्याशियों में से चुनाव हो
यह नहीं कि राम को विजयी घोषित कर दिया जाए।
प्रिय सुशील जी एवम अविनाश जी ,
ReplyDeleteएक बहुत उम्दा बात निकल कर आई है ! जब तक गलत उम्मीद्वारो को ब्लैक लिस्ट करने का कोइ कारगर तरीका नही लाया जायेगा , तब तक कोई सुधार नही होने वाला है !
वोट डालने को जागृति और वोटिंग का बहिष्कार करने को सुषुप्ति की संज्ञा देने वाले चुनाव आयोग ने चुने हुए प्रत्याशी या फिर पार्टी की अकर्मण्यता के खिलाफ आम-आदमी को क्या अधिकार दे रखे हैं--यह प्रश्न भी कम विचारणीय नहीं है।
ReplyDeleteहर शाख पे बैठा हो उल्लू जहाँ
ReplyDeleteवोट देने मैं जाऊं कहाँ
वजा फरमाया आपने ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए!
ReplyDeleteये सच है की मैं ऑस्ट्रेलिया में रहती हूँ लेकिन मैं हूँ तो इंडियन और सबसे बड़ी बात ये है की मैं जमशेदपुर,झारखण्ड में पली बड़ी हूँ इसलिए हिन्दी भाषा मुझे बेहद पसंद है! मैं पेंटिंग करती हूँ और इसलिए सोचा की क्यूँ न शायरी के साथ अपनी बनाई हुई पेंटिंग भी दूँ तो और अच्छा लगेगा!
मेरे दूसरे ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है -
http://urmi-z-unique.blogspot.com
http://khanamasala.blogspot.com
आपने बहुत ही सठिक और महत्वपूर्ण बात कही है पड़कर बड़ा ही अच्छा लगा!